टीईटी अनिवार्यता के निर्णय से असमंजस की स्थिति
झांसी। देशभर में लाखों शिक्षकों के भविष्य को लेकर इस समय असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कारण है सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया टीईटी अनिवार्यता का निर्देश। नौकरी में बने रहने और प्रमोशन पाने के लिए इसे जरूरी कर दिया गया है। इसमें साफ कहा गया है कि कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले प्रत्येक शिक्षक को शिक्षक पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। जिनकी सेवा अवधि पांच साल से अधिक है, उन्हें अगले दो साल के भीतर टीईटी उत्तीर्ण करना होगा। जिनकी सेवा पांच वर्ष से कम बची है, उनकी नौकरी पर खतरा नहीं होगा, लेकिन पदोन्नति का मार्ग बन्द रहेगा। उच्चतम न्यायालय के आदेश में योग्यता को लेकर स्पष्ट सन्देश है कि इसमें कोई समझौता नहीं होगा। फिलहाल अल्पसंख्यक संस्थानों के शिक्षकों को इससे राहत है। अब शिक्षक मानसिक पीड़ा से ग्रसित होकर आन्दोलन की राह पकड़ रहे हैं। शिक्षक नेता अब्दुल नोमान बताते हैं कि उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रान्तीय आह्वान पर सूबे के समस्त जनपद मुख्यालयों से जिला इकाई द्वारा बड़ी संख्या में एकत्रित होकर जिलाधिकारी के माध्यम से प्रधानमन्त्री को ज्ञापन भेजा गया है। अध्यादेश लाकर बिल को समाप्त करते हुए शिक्षकों की सेवा सुरक्षा की मांग की है। क्योंकि केन्द्र सरकार द्वारा दो हजार सत्रह में जो प्रस्ताव लाया गया था। वह सुप्रीम कोर्ट में निर्णय का आधार बन गया। ऐसे में शिक्षकों में अनिवार्य सेवानिवृत्ति का भय व्याप्त हो गया है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमन्त्री ने शिक्षकों के हित संरक्षण की बात कही है। उच्चतम न्यायालय के आदेश पर समीक्षा याचिका दाखिल करने के लिए विभाग को आदेशित किया है। मुख्यमन्त्री का मानना है कि पूर्व से कार्यरत शिक्षक लम्बे समय से व्यवस्था का अंग हैं। पठन – पाठन में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। सरकार समय – समय पर उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करती रही है। इससे समयानुरूप परिवर्तित हो रही शिक्षा प्रणाली से वह अपडेट रहते हैं। ऐसे में उनकी सेवा और अनुभव को दरकिनार करना उचित नहीं है।