*चांद पर जीवन की तलाश कर रहे हैं लेकिन हमारे देश में भी एक।।रिपोर्ट, कृष्ण कुमार।।*
हम भले ही चांद और मंगल पर जा रहे हैं लेकिन हमारे देश में एक तबका ऐसा भी है। जो जिंदगी से बहुत दूर कूडें और कचरे के ढेर में अपनी जिंदगी तलाश रहा है। हमने शहरों एवं कस्बों में ऐसे कई बच्चे देखे होंगे जो कूड़े कचरे के ढेर में ग्लूकोज की बोतलें शराब की बोतलें जेसी अपने मतलब की चीजे तलाश करते है। और उन्हें बेचकर दो वक्त की रोटी के लिए अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए जिंदगी की तलाश करते हैं। ऐसे बच्चों की तादाद दिन प्रतिदिन घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। कम उम्र के इन बच्चों के प्रति संबंधित विभागों के अधिकारी सरकारी फरमान के प्रति कितने गंभीर हैं। जहां सरकार शिक्षा के क्षेत्र के उत्थान के लिए भारी भरकम खर्च कर बच्चों को सरकारी स्कूलों में ड्रेस कॉपी किताबों के साथ खाने पीने की व्यवस्था कर रही है ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित ना रह सके। फिर भी ऐसे बच्चों को अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने के लिए गंदगी के ढेर मैं कबाड़ बीनने का कार्य कर रहे हैं। बेहद ही गरीब परिवार के यह बच्चे आज भी शिक्षा की बुनियादी सुविधाओं से दूर रोजी-रोटी की तलाश में भटकते रहते हैं गरीब परिवारों के यह बच्चे आज भी अपने कंधों पर बस्ते की जगह कंधों पर आजीविका का बोझ लिए चल रहे हैं। आज भी इन गरीब बच्चों का कूड़े के सहारे ही भरता है पेट इनके लिये सरकारी योजनाए बेमानी है। इन लोगों की सुधि लेने वाला कोई नहीं है आखिर सरकार की नजर कब इन लोगों पर पड़ेगी। जिससे यह बच्चे पढ़ लिख कर शिक्षित होकर आगे बडे़। और इन बच्चों का भी भविष्य उज्जवल बने।