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कैसे होता है संक्रमण, विश्व रेबीज दिवस विशेष लेख – डॉ.सुधाकर पांडे 

ByNeeraj sahu

Sep 28, 2025
विश्व रेबीज दिवस विशेष लेख – डॉ.सुधाकर पांडे
           *रेबीज* बीमारी एक वायरस के संक्रमण से होने वाले घातक बीमारी है जो मनुष्यों एवं जानवरों के लिए  हमेशा घातक होता है। लेकिन बचाव पूरी तरह संभव है। यह बीमारी ज्यादातर कुत्तों  (96%) के काटने या  खरोचने के कारण होती है लेकिन बिल्ली, बंदर या अन्य जंगली जानवरों के द्वारा भी हो सकती है।
*कैसे होता है संक्रमण* :
       यदि कोई भी जानवर असामान्य रूप से आपको काट देता है तो वह रेबीज हो सकता है क्योंकि सामान्यतः पालतू जानवर ऐसा नहीं करते जब तक कि वह संक्रमित ना हो।
यदि जानवर काट ले तो क्या करें:  सबसे पहले घाव को साबुन और साफ बहते पानी से अच्छी तरह धोएं।  घाव को खुला छोड़े,  टांके या  बैंडेज ना लगाएं।
*त्वरित उपचार जरूरी है*: डॉ उत्सव राज पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट
      नजदीकी चिकित्सक से मिले और बचाव हेतु त्वचा या मांसपेशियों में टीके अवश्य लगवाएं। सामान्यतः मांसपेशियों में लगने वाले पांच टीके अथवा त्वचा के नीचे लगने वाले चार टीके  चलन में है। घाव का उपचार चिकित्सक द्वारा जांच कर श्रेणी के आधार में किया जाता है ।
*कैटेगरी 01:*
प्रथम श्रेणी में जिसमें केवल त्वचा में  जानवर का लार, या  छूने या प्यार करना आता है, में किसी भी प्रकार के टीके की  आवश्यकता नहीं होती।
*कैटेगरी 02:*
 द्वितीय श्रेणी में त्वचा में दांत या नाखून से आए हुए खरोच या लालिमा जिसमें हल्का सा रक्त का स्राव हो आता है , जिसके उपचार हेतु त्वचा में कुल 4 टीके उपचार के प्रथम दिवस अर्थात दिवस 0,  3, 7 और 28वें दिन लगवाए जाते हैं। इसी प्रकार यदि मांसपेशियों में लगने वाले टीके का चयन किया जाता है तो दिवस शून्य 0, 3, 7, 14 और 28 दिन तक पांच टीके लगाए जाते हैं।
*कैटेगरी 03 :*
तृतीय श्रेणी के घाव में श्रेणी 2 की तरह टीके के साथ-साथ एंटीबॉडी के रूप में इम्यूनोग्लोबुलीन घाव के चारों तरफ मरीज के वजन के आधार पर निर्धारित करके लगाया जाता है।
*क्यों है खतरनाक* : डॉ . अनुराधा राजपूत
*जिला महामारी रोग विशेषज्ञ
 समय पर टीका लगाकर आप रेबीज जैसे जानलेवा बीमारी से खुद को बचा सकते हैं क्योंकि यदि आपने टीका नहीं लगाया और यदि आपके शरीर में संक्रमण पहुंच गया तो 30 दिन से लेकर 6 साल (कभी कभी इससे भी ज्यादा) के अंदर ।
*लक्षण-*
 कभी भी आपको रेबीज के लक्षण जैसे-
-पानी से डर
-लाइट से डर
-हवा से डर
-सांस लेने में तकलीफ आदि लक्षण आ सकते हैं जो ला- इलाज है।
*बचाव हेतु क्या-क्या करें*:  ज्यादातर देखा गया है की आवारा कुत्ते छोटे बच्चों पर ज्यादा हमला करते हैं। समय-समय पर अपने पालतू जानवरों को नियमित एंटी रेबीज का टीका लगवाते रहे और हमेशा अपनी निगरानी में रखें ।
पालतू जानवर को किसी भी अज्ञात /आवारा जानवर के काटने की घटना होती है तो उसे तुरंत पशु चिकित्सालय लेकर जाएं और टीका लगवाएं।
अपने घर के आसपास कूड़ा कचरा या बचे हुए खाना ना फेक क्योंकि उसी के लालच में आवारा जानवर आपके घर और आपके परिवार के नजदीक आते रहेंगे। पंचायत या नगर पालिका के सहयोग से आवारा कुत्तों को रेबीज से बचाव के टीके लगवानी चाहिए।
 *यह बहुत जरूरी* :
किसी भी अज्ञात आवारा जानवर को बेवजह छूने या पकड़ने की कोशिश ना करें रेबीज के संक्रमण से जानवरों में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं –
1.पहले जानवरों के व्यवहार में परिवर्तन हो जाना ।
2.भौंकने की आवाज में बदलाव
 3.बिना किसी कारण के उत्तेजित होना और काटना
4.पानी से डरना
5.मुंह से अत्यधिक लार का निकलना
6.झटके आना और 10 से 15 दिनों के अंदर मृत्यु हो जाना।
*टीका है आसान और सुरक्षित*: डॉ रमाकांत स्वर्णकार नोडल अधिकारी
जनपद झांसी में माह अप्रैल से।  अगस्त तक 20650 डॉग बाइट के केस आए जिनमें
 6670 पालतू जानवरों से काटे गए केस थे। अत यह आवश्यक है कि पालतू जानवरों से भी सावधान रहें एवं काटे जाने पर तत्काल टीकाकरण कराए।
यदि आपने पहले से एंटी रेबीज टीका लगवा चुके हैं और आपको जानवर फिर से काट दे तो आपको केवल प्रथम और तीसरे दिवस के टीके (0.5 ml मांशपेशियों में या 0.1 ml   त्वचा में ) ही लगाने की आवश्यकता होगी लेकिन उक्त हेतु आपको पूर्व में लगे टीके का रिकॉर्ड/ स्लिप या  डॉक्टर की पर्ची सम्भाल  के रखना जरूरी है।
 जानवर हमारे पर्यावरण के अभिन्न अंग है हमें कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें छेड़े ना,  ना ही उन्हें परेशान करें
*पहले से ज्यादा प्रभावी टीके*  दशकों पहले कुत्तों के काटने पर 14 टीके लगते थे, जिसके डर से मरीज  जड़ीबूटि या झाड़फूंक का सहारा लेकर जान गवां देते थे।
अनुसंधान अनुसार यह पाया गया है कि पहले की मांशपेशियों में लगने वाले 5 डोस वाले टीके की अपेक्षा त्वचा में लगने वाले 4 डोस के टीके ज्यादा प्रभावी ढंग से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है ।
*निःशुल्क है टीके* : सभी टीके समस्त सरकारी चिकित्सालयों में पूर्णतः निःशुल्क है और गंभीर बीमारी के रोगी, छोटे बच्चे या गर्भवती महिला सभी के लिए पूर्णतः सुरक्षित भी है।
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