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भारत की भाषा में परिवार की संकल्पना’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ

ByNeeraj sahu

Nov 28, 2025

भारत की भाषा में परिवार की संकल्पना’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में समानांतर सत्रों में भाषा, संस्कृति और व्याकरण पर सारगर्भित चर्चाए

केंद्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारत की भाषा में परिवार की संकल्पना’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ गांधी सभागार, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता पूर्व कुलपति एवं हिंदी शिक्षण मंडल, केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने की। हैदराबाद से पधारे प्रसिद्ध भाषाविद् प्रोफेसर आर. एस. सर्राजु मुख्य वक्ता रहे, जबकि केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के निदेशक प्रोफेसर हितेंद्र मिश्र विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के निदेशक प्रोफेसर सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने विशिष्ट वक्ता के रूप में संबोधित किया। सभी अतिथियों का स्वागत पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ के निदेशक प्रोफेसर मुन्ना तिवारी द्वारा किया गया।

इस अवसर पर प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘हिंदी अनुशीलन’ के प्रोफेसर हरिवंश लाल शर्मा को समर्पित विशेषांक का विमोचन भी किया गया। मुख्य वक्तव्य में प्रोफेसर आर. एस. सर्राजु ने यूरोपीय विद्वानों द्वारा किए गए भाषाई वर्गीकरण को अवैज्ञानिक बताते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं को उपनिवेशवादी दृष्टिकोण के बजाय भारतीयता, समाज और ज्ञान परंपरा से जोड़कर समझने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर हितेंद्र मिश्र ने भारतीय परंपरा में भाषा को कभी भी विभाजन का आधार न मानते हुए ग्रियर्सन एवं चॉम्स्की के वर्गीकरण सिद्धांतों की समीक्षा प्रस्तुत की। प्रोफेसर सुनील कुलकर्णी ने भाषा को मनुष्य के भावों की संवाहिका बताते हुए पाश्चात्य भाषाई दृष्टि की सीमाओं पर चर्चा की। अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे ने भारतीय भाषाओं की सांस्कृतिक एकता पर बल देते हुए भाषाई विभाजन को सांस्कृतिक तथा राजनीतिक विभाजन का कारण बताया और भारतीय भाषाओं के मूल भाव—भारतीयता—को संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
अंत में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री ज्ञानेंद्र कुमार ने आभार व्यक्त किया तथा संचालन डॉ. अचला पांडेय द्वारा किया गया।

उद्घाटन सत्र के बाद आयोजित प्रथम और द्वितीय समानांतर संयुक्त सत्र में संगोष्ठी की थीम को आगे बढ़ाते हुए विविध विद्वानों ने अपने विचार प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर सुनील बाबूराव कुलकर्णी द्वारा की गई। मुख्य वक्ता एवं विशिष्ट वक्ताओं—प्रोफेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल, प्रोफेसर ए. अच्युतन, प्रोफेसर नवेंद्र कुमार सिंह एवं प्रोफेसर बी. बी. त्रिपाठी—का स्वागत प्रोफेसर मुन्ना तिवारी, डॉ. रेनू शर्मा, डॉ. अचला पांडेय, डॉ. रामनरेश दिहुलिया, डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी और डॉ. प्रेमलता ने पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र एवं अभिनंदन पत्र भेंटकर किया।

सत्र के प्रथम वक्ता प्रोफेसर नवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि भारोपीय भाषा परिवार की अवधारणा में दृष्टांतिक आधारों के अतिरिक्त कोई वैज्ञानिकता नहीं है। उन्होंने हिंदी को पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाली सेतु-भाषा के रूप में रेखांकित किया। प्रोफेसर बी. बी. त्रिपाठी ने परिवार की अवधारणा को संस्कृत साहित्य, दृष्टांतों और समाज निर्माण की संदर्भ-भूमि में व्याख्यायित किया। मुख्य वक्ता प्रोफेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने भाषा-विचार को तीन चरणों में समझाते हुए बताया कि यूरोपीय विद्वानों ने संस्कृत की छवि को विकृत करने का प्रयास किया, भारतीय विद्वानों ने ऐतिहासिक भाषा सिद्धांत में पाश्चात्य लेखकों के उद्धरणों को आधार बनाया और अब समय है कि नई पीढ़ी को भारतीय चिंतन और पाणिनि जैसे आचार्यों की व्याकरण-परंपरा से जोड़ा जाए।

दूरदराज दक्षिण भारत के केरल से पधारे प्रोफेसर ए. अच्युतन ने मलयालम भाषा, संस्कृति और नाटक पर सारगर्भित व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने भरतमुनि की परंपरा, नाट्य की दृष्टि और ताल की अवधारणा को उदाहरणों सहित स्पष्ट किया। सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर सुनील बाबूराव कुलकर्णी ने भारतीय भाषा की संकल्पना, मानसिक स्वतंत्रता, व्याकरण के मानक तथा संस्कृत परंपरा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. विपिन प्रसाद द्वारा किया गया, जबकि संकलन कार्य में डॉ. रामनरेश दिहुलिया, डॉ. सुधा दीक्षित, डॉ. राघवेंद्र कुमार द्विवेदी एवं अजय कुमार तिवारी ने योगदान दिया। समापन पर डॉ. अवनीश कुमार ने आभार व्यक्त किया।
इस अवसर पर प्रो. पुनीत बिसारिया, डॉ नवीन चंद पटेल, डॉ. पुनीत श्रीवास्तव, डॉ. शैलेंद्र तिवारी, डॉ. आशीष दीक्षित, श्री आशुतोष शर्मा, श्री जोगेंद्र सिंह, श्री कपिल शर्मा, डॉ. गरिमा, सुश्री रिचा सेंगर, आकांक्षा, मंजरी सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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