हिन्दू राष्ट्र को ले कर देश में इस समय खूब चर्चा हो रही है. राजशाही के दौर में नेपाल आधुनिक दुनिया में एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था. मनु स्मृति राज्य की सारी कार्यकारी शक्तियां में निहित करती है. हिन्दू राष्ट्र राजशाही के इस तरह के मंसूबे को पूरा करता था लेकिन ब्राह्मण संहिताओं के अन्य विधान नेपाल के हिन्दू राज्य में सार्वभौम मानवधिकारों की घोषणा के विपरीत होने से लागू नहीं किये गए थे. आजादी की लड़ाई के समय सावरकर हिन्दू राष्ट्र के सबसे बड़े पैरोकारों में थे लेकिन दलित नेता डॉ अम्बेडकर से वे प्रभावित थे और अछूतों के सार्वजनिक तालाब का पानी पीने के लिए अम्बेडकर द्वारा किये गए सत्याग्रह का उन्होंने समर्थन किया था. लेकिन जब सावरकर ने केसरी में जातिवाद का विरोध करते हुए भी चातुर्य वर्ण व्यवस्था को सही ठहराने की कोशिश की तो अम्बेडकर का उनसे मोहभंग हो गया. एक और हिंदू वादी नेता परमानंदजी भी अम्बेडकर के प्रशंसक थे. उन्होंने लाहौर में जाति तोड़क मण्डल द्वारा आयोजित हिन्दू सम्मेलन की अध्यक्षता के लिए अम्बेडकर को आमंत्रित किया जिसके लिए वे सहमत हो गए. इस अवसर के लिए तैयार अपने भाषण की प्रति अम्बेडकर ने जब आयोजकों को भेजा तो यह सम्मलेन रद्द कर दिया गया क्योंकि आयोजक हिन्दू धर्म की अमानवीय व्यवस्थाओं में सुधार के लिए उनके द्वारा सुझावों को नहीं पचा सके. एक और मजेदार तथ्य इस सम्बन्ध में है कि हिन्दू राष्ट्र स्थापित कर दलितों और पिछड़ों का आरक्षण समाप्त करने का आरोप भाजपा पर लगाया जा रहा है. दूसरी ओर महाभारत के शन्ति पर्व में तत्कालीन हिन्दू राष्ट्र में शासन व्यवस्था में सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व का उल्लेख मिलता है. इसमें भीष्म पितामह को युधिष्ठिर से यह कहते हुए प्रस्तुत किया गया है कि मंत्रियों में 4 नियम, संयम में दृढ ब्राह्मण,8 बलशाली क्षत्रिय, तीन विनयशील शूद्र, पौराणिक ज्ञान के उत्कृष्ट विद्वान एक सूत को और सर्वाधिक धन धान्य से संपन्न 21 वैश्यो को मंत्रिमंडल में सम्मिलित किया जाना चाहिए l