• Tue. Jul 8th, 2025

Jhansi Darshan

No 1 Web Portal in jhansi

राष्ट्रीय पुस्तक मेला के अंतर्गत आज त्रिदिवसीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ उद्घाटन

ByNeeraj sahu

Mar 26, 2025

राष्ट्रीय पुस्तक मेला के अंतर्गत आज त्रिदिवसीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ उद्घाटन

लेखक से मिलिए कार्यक्रम में साहित्यकार विवेक मिश्रा ने साझा किए अनुभव

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में चल रहे राष्ट्रीय पुस्तक मेला के अंतर्गत आज त्रिदिवसीय सृजनात्मक लेखन कार्यशाला और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज उद्घाटन हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्थान के अध्यक्ष हरगोविंद कुशवाहा ने शोधार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि आप शोधार्थी देश का भविष्य हैं, आपके साथ ही साहित्य आगे जाएगा। इसके लिए आपका किताबों से जुड़ना जरूरी है। यह अच्छा है कि पढ़ने योग्य लिखा जाए और उस से बेहतर यह है कि लिखने योग्य किया जाए। कोई ऐसे ही लेखक नहीं बन जाता इसके लिए बहुत तपस्या करनी पड़ती है। दुनिया में जितना भी साहित्य लिखा गया है, उसमें रामचरित मानस ही सर्वश्रेष्ठ है।

शिलांग से आए प्रो. हितेंद्र मिश्र ने कहा कि लेखक और पाठक  बीच जो अंतराल है उसे फिर से समझने जरूरत है।  आज अख़बार खरीदने का आंकड़ा बहुत खराब है।अखबार और किताबें लेकर चलने की प्रकृति बदलती  जा रही है। हमें लिखा गया यही बहुत महत्वपूर्ण है। हमें समझना होगा कि जो हम लिखते है उसको कहीं जगह मिलेगी या नहीं। यह ध्यान रखना चाहिए कि ये लेखन किस काम का है। अगर आप लिखना चाहते है तो अपने लेख को अपने आप से, समाज से, परिवार से, जोड़ कर देखने आवश्यकता है। आज लेखक समझने के लिए लिखता है पहले की कविताओं को समझने की जरूरत नहीं थी।

कार्यक्रम के अध्यक्ष, गंगा प्रसाद शर्मा “गुण शेखर”
ने कहा कि किताब को अपनी प्रेमिका समझिए। उससे प्रेम कीजिए। आप उसे बहन भाई मां इत्यादि सब समझ सकते है। आज बच्चों से ज्यादा बिगड़े हुए बड़े लोग हैं बच्चे बड़ों को देखकर ही सीखते हैं। रामायण महाभारत भागवत जैसी कथाएं जो लोग सुनते जाते हैं उनकी उम्र 70 से 75 वर्ष होती है इसके अनुसार हम आयु के 15 वर्ष ही इन काव्य को दे पाते हैं। अगर यही संस्कार और साहित्य का ज्ञान हम 20- 25 वर्ष की आयु में लेना प्रारम्भ करें तो साहित्य को 75 से 80 वर्ष दे पाएंगे। अतिथियों का स्वागत करते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर मुन्ना तिवारी ने कहा कि यह कार्यक्रम हमारा नहीं शोधार्थियों का है। शोधार्थियों के अनुरोध पर इसका आयोजन किया गया और इस आयोजन की पूरी जिम्मेदारी शोधार्थियों ने ली है। उन सभी शोधार्थियों को साधुवाद जो इस कार्यक्रम को सफल बनाने में दिन रात मेहनत कर रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन, डॉ विपिन प्रसाद और आभार डॉ सुधा दीक्षित ने ज्ञापित किया

लेखक से मिलिए कार्यक्रम में मशहूर साहित्यकार विवेक मिश्रा ने युवाओं से कहा कि लिखने में महत्व इस बात का है कि आप अपने भीतर के भावनाओं को कैसे व्यक्त करते हैं। मैने जब अपना पहला कहानी संग्रह हानिया लिखा। मैं अपना दुख, अपनी तकलीफ, अपना परिवेश, अपने आस पास की बाते लिखता था। जब हंस प्रकाशन से मुझे फोन आया। मैने कभी नहीं सोचा था कि मेरी कहानियां स्वीकार होंगी। मेरा मानना है कि कहानी पाठक के पढ़ने से कहानी बनती है। मेरी एक ओर रचना गुब्बारा पढ़ने का बाद पाठक खुद को कहानी से जोड़ पाता है। मेरा लेखन से कोई जुड़ाव नहीं था मगर जब बड़े साहित्यकारों ने मेरी रचनाएं पढ़ी और तारीफ हुई तब मुझ में लिखने में की हिम्मत आई और मैं इस राह पर चल पड़ा। सत्र का संचालन रिचा सेंगर ने किया। अतिथियों का स्वागत डॉ.शैलेन्द्र तिवारी और आभार प्रो. मुन्ना तिवारी ने ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ. अचला पांडेय, डॉ. श्रीहरि त्रिपाठी, नवीन चंद्र पटेल, डॉ. प्रेमलता श्रीवास्तव, डॉ. द्यूती मालिनी, डॉ. आशीष दीक्षित, डॉ. सत्येंद्र चौधरी, डॉ. सुनीता वर्मा, डॉ. आशुतोष शर्मा, डॉ. राघवेंद्र, कपिल शर्मा, डॉ. रामनरेश, डॉ. जोगेंद्र, गरिमा, आकांक्षा सिंह, मनीष मंडल, विशाल, अजय तिवारी समेत कई अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी आदि मौजूद रहे।

Jhansidarshan.in

You missed