कटेरा (झाँसी) सिर पर जवारों के घट,, तीखी गरमी-उमस,.. पैरो से जूते-चप्पल नदारद, जुंबा पर माता के गीत और देवी दरबार को बढ़ते कदम।
यह हाल सोमवार को हर तरफ को हर तरफ देखने को मिला।
श्रद्धाभाव से जवारों की विसर्जित यात्रा निकली।
.. दो-दो जोगनी के बीच अकेलो लांगरिया, दुर्गा मैया के भंवर में गुटवन खेले लांगरिया” तो कही ”द्वारे तुम्हारे बड़ी भीड़ ओ जगदम्बा मैया” जैसे माता के गीतों पर हर तरफ थिरकता माहौल रहा। सोमवार ढोल- नगाड़ो, मजीरा व करताल के बीच जवारे उठे और बड़ी माता मन्दिर पहुँचे और पूजन के बाद मैया को जवारे अर्पित किये गये।
18 मार्च से चैत्र नवरात्र शुरू हुये। इसी साथ कलश स्थापना हुई। घर-घर जवारे बोये गए। श्रद्धाभाव से इनका पूजन हुआ। वहीं नवमी की पूजा के बाद जवारे निकाले। तीखी धूप के बावजूद किसी को न तो प्यास लगी और न भूख। सभी माँ की भक्ती में लीन नजर आये। मीलो से चले जवारे जगह-जगह का आकर्षण रहे। सड़क चलते लोग भी शीश नवाते दिखे। एक पहर से पहले जवारे ले जाने का शुरू हुआ सिलसिला दुसरे पहर तक माता के दरबार पहुँचता रहा। खास तौर से सिर पर जवारे के घड़े रखे महिलाएं सिर्फ और सिर्फ माँ की उपासना में लीन थी। वही पुरुषो की टोलियां भी भक्ति से सराबोर थी।
*बुन्देलखण्ड में खास महत्व*
बुन्देलखण्ड में जवारों का खास महत्व है। जिसकी नौ दिनों तक पूजा की जाती है। जवारे रखने वाले नौ दिनों तक (माँ की उपासना में लीन रहकर) इनकी देख-रेख करते है।
कहा जाता है जवारों में सुबह-शाम एक ही धार में जल अर्पित किया जाता है। जो उपासना काफी कठिन होती है। नौ दिनों तक घरो में पूजा पाठ व भक्ति का माहौल रहता है। बाद में नवमी पर मन्दिरो, नदी, तालाब, पोखर में जवारे अर्पित व विसर्जित किये जाते है।
रिपोर्ट- भूपेन्द्र गुप्ता ग्रामीण एडिटर ब्यूरो धीरेंद्र रायकवार