प्रदीप यादव
गोण्डा ।कल चमन था आज इक सेहरा हुआ, देखते ही देखते ये क्या हुआ। शायर की ये पंक्तियां स्वर्ग की अनुभूति कराने वाली वजीरगंज के कोंडर झील के तट पर स्थित अवध के नवाब आसुफुद्दौला के निर्मित ऐतिहासिक बारादरी के वास्तविक दास्तान को बयां कर रही, जहाँ कभी दिसम्बर के शुरूआती दौर मे क्षेत्र के अरंगा पर्वती झील की तरह प्रवासी पंक्षियों की किलकारियाँ गूंजती थी, और ऐतिहासिक बारादरी के सींढ़ियों को छूकर बहने वालीकोंडर झील में वो विचरण करते दिखाई देते थे, मगर वक्त क्या बदला यहाँ की पूरी दास्तान ही बदल गयी, जहाँ कभी रंग बिरंगे पंक्षियों की कोलाहल गुंजायमान रहती थी आज वहां दूर दूर तक ख़ामोशी का साया दस्तक दे रही है।अवगत हो कि वजीरगंज कस्बे के पूरब की ओर स्थित कोंडर झील के तट पर स्वर्ग की अनुभूति कराने वाले ऐतिहासिक धरोहरों का निर्माण जमशेदबाग के रूप मेअवध के नवाब आसुफुद्दौला नेसन 1775 से 1795 के बीच लखौरी ईंटो के साथ साथ चूना व सुर्खी के मिश्रण से करवायाथा। जहाँ उन्होंने बारादरी के साथ साथ उसके अंदर मस्जिद न्यायलय व अनेकों भवन भी बनवाये थे। बताते चलें कि दक्षिण दिशा की ओर प्रवाहित कोंडर झील के निर्मल जल को स्पर्श करती बारादरी की सींढ़ियां उन दिनो किसी स्वर्ग के नजारे से कम न थीं, प्रवासी पंक्षियों के कोलाहल से झीलहमेशा गुंजायमान रहता था, जिसका सुन्दर नज़ारा लेने केलिए नवाब व उनकी बेगम झील के तट पर घंटो घंटो बैठे रहते थे। मगर बदलते वक़्त के साथ साथ यहाँ की कहानी भी बदलने लगी,नवाब ने अपने इन इमारतों को अमजद अली शाह को दिया,जिसे अमजद अली शाह ने सन 1837 मे अपने वजीर अमीनुद्दौला के प्रिय मुंशी बकर अली खाँ को सौंप दिया। कहा जाता है कि बारादरी के मध्य एक अपूर्ण भवन है जो अचानक अंग्रेजों के आक्रमण करने से पूरा न हो सका। बताते चलें कि वक़्त के साथ साथ सभी इमारतें जमीदोजहो गयीं, याद के रूप में सिर्फ ऐतिहासिक बारादरी शेष है जो वक्त के थपेड़ों को सहकर जमीदोज के कागार पर पहुँचता जा रहा है। अवगत हो कि यहाँ विगत कुछ दिनो पहले जब डी.एम व सी.डी.ओ पहुंचे तो वो भी वि विचित्र नजारे को देख आश्चर्य चकित रह गए और उनका भी मन बाग बाग हो गया।झील के जल पर जलकुम्भियों का राजकोंडर झील के निर्मल जल पर जहाँ कभी विचरण करने वाले पंक्षियों का कलरव रहता था,आज वहां जलकुम्भियों का राज कायम है जो झील के मनमोहक दृश्य पर चाँद जैसा धब्बा दिखाई दे रहा है। जिसके चलते अब यहाँ मनमोहक पंक्षियों का आगमन समाप्त हो चुका है।नहीं पड़ती यहाँ पुरातत्व विभाग की नजरेंबीते दिनो पुरातत्व विभाग ने जमीदोज हो रहे इस धरोहर को मुरम्मत करवा कर उसका रंग रोगन भी करवाया था, मगर सच तो यह है कि यहाँ बदरंगी का रंग आज भी हकीकत की दास्तान बयां कर रही है, और चारों तरफ गंदगी का अम्बार लगा हुआ है, काश पुरातत्व विभाग इस पर विशेष ध्यान देता तो यहाँ का नजारा कुछ अलग ही होता।