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रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी ! जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है !

इसको पढ़ना बड़े ध्यान से और अंत में हकीकत है फिर खुद अंतर्मन में सोचना जिसने भी लिखा है मुझे नहीं मालूम लेकिन इतनी कड़वी हकीकत होती है यह मुझे मालूम है हाथ जोड़कर निवेदन है मेरा पढ़ना अवश्य और हो सके तो कमेंट भी करना

जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो..!
जयंती/ जनकवि अदम गोंडवी

‘काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में’ जैसे चंद पंक्तियों से लोकतंत्र की वास्विकता लोगो के सामने रखने वाले जनकवि अदम गोंडवी ने अपने ग़ज़लों में राजनीति, धर्म, साम्प्रदायिकता, व्यवस्था तथा भ्रस्टाचार को प्रमुखता दिया। अदम गोंडवी दुष्यंत कुमार की परंपरा के हिंदी ग़ज़लकार हैं तथा लोकतंत्र के खस्ता हाल पर जब इन्होंने अपनी कलम चलायी तो धूमिल के समकक्ष नज़र आये। इनकी ग़ज़लों में नायक-नायिका नहीं बल्कि गाँव, खेत-खलियान, भूख-गरीबी, मज़दूर-बेरोजगारी, किसान, पंच और पंचायत होती है। इनकी कलम दलित-शोषित और असहाय की आवाज़ है। इनका समाज के प्रति ज्ञान किताबी नहीं था बल्कि इन्होंने समाज को जिया और जो समाज में महसूस किया उसे अपनी कलम से अपनी ग़ज़लों में ढाला। गोंडवी साहब का व्यक्तित्व निर्मल और साधू की तरह था। वह कबीर की तरह सामाजिक सौहार्द के बुनकर बनकर अपनी ग़ज़ल में इस व्यवस्था का समर्थन करते थें। इनकी ग़ज़लों की तरह इनका जीवन भी ठेठ-देहाती और सरल था। इनका जन्म 22 अक्टूबर 1947 को गोंडा जिले में हुआ था। इनका मूल नाम ‘रामनाथ सिंह’ था। सामंती शोषण पर लिखने के कारण इन्हें अपने स्वजातीय लोगों के बुरे व्यवहार का भी सामना करना पड़ा था। इनकी मृत्यु 18 दिसम्बर 2011 को लखनऊ में लिवर की बिमारी से हुआ था।
सन् 1998 में इन्हें मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से ‘दुष्यंत कुमार’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इनकी तीन पुस्तके प्रकाशित हुई है। ‘गर्म रोटी की महक’ ‘धरती की सतह पर’ और ‘समय से मुठभेड़।’ सभी पुस्तकें अपने आप में एक ग्रंथ है जो सामाजिक ताने-बाने, वर्तमान भारतीय समाज, व्यवस्था एवं विषमताओं से परिचित कराती है।

जयंती पर ‘समय से मुठभेड़’ करने वाले कलमकार को श्रद्धा सुमन समर्पित….!
“वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है   /   इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है

कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है

रोटी कितनी महँगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है।”

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